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कुछ पहले इन आँखों आगे क्या -क्या न नज़ारा गुज़रे था<br>
क्या रौशन हो जाती थी गली जब यार हमारा गुज़रे था<br><br>
थे कितने अच्छे लोग कि जिनको अपने ग़म से फ़ुर्सत थी<br>
सब पूछें पूछते थे अहवाल जो कोई दर्द का मारा गुज़रे था<br><br>
अब के तो ख़िज़ाँ ऐसी ठहरी वो सारे ज़माने भूल गये<br>
जब मौसम-ए-गुल हर फेरे में आ -आ के दुबारा गुज़रे था<br><br>
थी यारों की बहुतात बहुतायत तो हम अग़यार से भी बेज़ार न थे<br>
जब मिल बैठे तो दुश्मन का भी साथ गवारा गुज़रे था<br><br>
अब तो हाथ सुझाई न देवे लेकिन अब से पहले तो<br>
आंख आँख उठते ही एक नज़र में आलम सारा गुज़रे था
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