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Kavita Kosh से
आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है <br>
देते हैं जन्नत हयात-ए-दहर के बदले <br>
ख़ाक में उश्शाक़ की ग़ुब्बार नहीं है <br><br>
दिल से उठा लुत्फेलुत्फ-ए-जल्वाहा-ए-म'आनी <br>
ग़ैर-ए-गुल आईना-ए-बहार नहीं है <br><br>
वाये! अगर अहद उस्तवार नहीं है <br><br>
तू ने क़सम मैकशी मयकशी की खाई है "ग़ालिब"<br>
तेरी क़सम का कुछ ऐतबार नहीं है<br><br>