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अहं रहित मह मह महकंेगे महकेंगे तेरे प्राण सुमन मधुकर स्निग्ध चाॅंदनी चाँदनी नहला देगी चूमेगा मारुत निर्झर
तुम्हें अंक में ले हृदयेश्वर हलरायेगा मधुर मधुर
टेर रहा है मूलाधारा मुरली तेरा मुरलीधर।।106।।
उर वल्लभ के पद शतदल में मरना मिट जाना मधुकर
रस समाधि में खो जातेे जाते ही होगा सब अशेश अशेष निर्झर
अनजाने अबाध उमड़ेगी भावों की उर्मिल सरिता
टेर रहा है भावमालिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।107।।
टेर रहा चैतन्यरुपिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।109।।
तूू तू न जगत का है अपने प्रभु का है यही सोच मधुकर
नहीं किसी प्रमदा का नर का केवल हरि का ही निर्झर
जीवन मरण बना ले दोनों सच्चा स्मृतिरसमय पंकिल
टेर रहा है मंगलसदनी मुरली तेरा मुरलीधर।।110।।
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