Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’ }} <poem> चिर विछोह की अंतहीन ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’
}}
<poem>

चिर विछोह की अंतहीन तिमिरावृत रजनी में मधुकर,
फिरा बहुत बावरे अभीं भी अंतर्मंथन कर निर्झर
सुन रुनझुन जागृति का नूपुर खनकाता वह महापुरुष
टेर रहा है अनहदनादा मुरली तेरा मुरलीधर।।191।।

पी उसकी स्मिति सुधा प्रफुल्लित दिगदिगन्त अम्बर मधुकर
विहॅंसित वन तृण पर्ण धवलतम तुहिन हिमानी कण निर्झर
मधुर मदिर प्राणेश हॅंसी में डूब डूब उतराता चल
टेर रहा है प्रीतिपंखिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।192।।

उमड़ घुमड़ घन मोहन का संदेशा ले आये मधुकर
इधर तुम्हें रोमांच उधर वे भी पुलके होंगे निर्झर
वे भींगे होंगे आये हैं तुम्हें भींगाने को बादल
टेर रहा है मेघरागिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।193।।

तेरा जीवन गेंद गोद ले रखे गिरा दे या मधुकर
मृदु कर से सहलाये अथवा चरण ताड़ना दे निर्झर
तू उसका है जैसे चाहे तुमसे खेले खिलवाड़ी
टेर रहा है मुक्तमानसा मुरली तेरा मुरलीधर।।194।।

कितनी करुणा है उसकी कल्पना न कर सकता मधुकर
जितना डूबेगा उतना ही आनन्दित होगा निर्झर
उसका दण्ड विधान कोप भी सदा अनुग्रह मय सुखमय
टेर रहा है त्रिवर्गफलदात्री मुरली तेरा मुरलीधर।।195।।
</poem>
916
edits