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09:35, 19 मई 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-2
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हमने भी विदा कर दिया प्रेम
रुख़सत कर दीं
ख़ुद को टटोलने की कोशिश करती बातें
खु़द पर से उतार दिया चांदनी का जादू
यह सफ़र यहां खत्म होता है
अब एक नाव तट से बंधी खड़ी है
एक आदमी कहीं पगडंडियों में खो गया है
पर, एक दिल बच गया है साबुत
कितना कुछ नष्ट होने के बाद भी
एक तपिश कहीं बची रह गयी है
शायद, कम जानते थे हम भी
ग़मे इश्क़ को !
</poem>