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|रचनाकार=हिमांशु पाण्डेय
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तुम ही पास नहीं हो तो इस जीवन का होना क्या है ?


मेरे मन ने खूब सजाये दीप तुम्हारी प्रेम-ज्योति के
हुआ प्रकाशित कण-कण अन्तर गूंजे गान स्नेह प्रीति के
पर जो यथार्थ थे, स्वप्न हुए, तो अब बाकी खोना क्या है ?
तुम ही पास नहीं हो तो इस जीवन का होना क्या है ?


तेरे मधु-उपकारों से ही अब तक जीवन चलता आया
तुम हो तब ही प्राण-वायु है, तुममें तम-सा घुलता आया
तुम हो नहीं, कहाँ जीवन है? अब इसको ढोना क्या है ?
तुम ही पास नहीं हो तो इस जीवन का होना क्या है ?


सोचा था तेरे प्रेम बीज बोऊँगा उर के अंचल में
फ़िर तरु निकलेंगे दीर्घकाय सुख झूलेगा मन चंचल में
पर जब माटी ही उसर हो तो बीजों का बोना क्या है ?
तुम ही पास नहीं हो तो इस जीवन का होना क्या है ?
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