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10:24, 19 मई 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हिमांशु पाण्डेय
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<poem>
मैं, मैं अब नहीं रहा, तुम ही तो हूँ ।
बहुत भटकता रहा खोजता
अपने हृदय चिरंतन तुमको
जो हर क्षण आछन्न रहे
ओ साँसे के चिर बंधन तुमको ,
मैं जाग्रत अब नहीं रहा, गम ही तो हूँ ।
मैं, मैं अब नहीं रहा, तुम ही तो हूँ ।
इस जीवन के कठिन समर में
तुम संबल बन कर आए हो
दुःख की ऐसी विकट धूप में
सुख-छाया बन कर छाये हो,
मैं ना कुछ भी विषम रहा, सम ही तो हूँ।
मैं, मैं अब नहीं रहा, तुम ही तो हूँ ।
</poem>