{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=सुदर्शन फ़ाकिर]][[Category:कविताएँ]]}}
[[Category:गज़ल]]
[[Category: सुदर्शन फ़ाकिर]]<poem>इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दियावर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~आप कहते थे के रोने से न बदलेंगे नसीबउम्र भर आपकी इस बात ने रोने न दिया
इश्क़ में ग़ैरतरोनेवालों से कह दो उनका भी रोना रोलेंजिनको मजबूरी-ए-जज़्बात ने रोने न दिया<br>वर्ना क्या बात थी किस बात हालात ने रोने न दिया<br><br>
आप कहते थे के रोने से न बदलेंगे नसीब<br>तुझसे मिलकर हमें रोना था बहुत रोना थाउम्र भर आपकी इस बात तंगी-ए-वक़्त-ए-मुलाक़ात ने रोने न दिया<br><br>
रोनेवालों से कह दो उनका भी रोना रोलें<br>जिनको मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया<br><br> तुझसे मिलकर हमें रोना था बहुत रोना था<br>तंगी-ए-वक़्त-ए-मुलाक़ात ने रोने न दिया<br><br> एक दो रोज़ का सदमा हो तो रो लें "फ़ाकिर"<br>हम को हर रोज़ के सदमात ने रोने न दिया<br><br/poem>