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Kavita Kosh से
हर सनम साज़ ने मर-मर से तराशा तुझको
पर ये पिघली हुई रफ़्तार कहाँ से लाता
तेरे पैरों में तो पाज़ेब पेहनदी पहना दी लेकिन
तेरी पाज़ेब की झनकार कहाँ से लाता