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[[Category:ग़ज़ल]]
ज़िक्र उस परीवश का, और फीर फिर बयाँ अपना <br>बन गया रक़ीब आख़ीर आख़िर था जो राज़दाँ अपना <br><br>
आज ही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहाँ अपना <br><br>
अर्श से इधर होता काश के मकाँ अपना <br><br>
दे वो जिस क़दर ज़िल्लत हम हँसी में टलेंगे टालेंगे <br>बारे आश्न आश्ना निकला उनका पासबाँ अपना <br><br>
दर्द-ए-दिल लिखूँ कब तक? ज़ाऊँ उन को दिखला दूँ <br>
उँगलियाँ फ़िगार अपनी ख़ामाख़ूँचकाँ अपना <br><br>
नंग-ए-सज्दा से मेरे संग-ए-आस्ताँ अपना <br><br>