भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
ये जन्नत-ए-निगाह वो फ़िर्दौस-ए-गोश है <br><br>
य सुभ दम जो देखीये देखिये आकर तो बज़्म में <br>
ना वो सुरूर-ओ-सोज़ न जोश-ओ-ख़रोश है <br><br>