कवि: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=रामधारी सिंह "'दिनकर"]]'[[Category:कविताएँ]][[Category:|संग्रह= रश्मिरथी / रामधारी सिंह "'दिनकर"]]'~*~*~*~*~*~*~*~}}
'तू ने जीत लिया था मुझको निज पवित्रता के बल से,
सोने पर भी धनुर्वेद का, ज्ञान कान में भरता था।
परशुराम का शिष्य विक्रमी, विप्रवंश का बालक है।
जलते हुए क्रोध की ज्वाला, लेकिन कहाँ उतारूँ मैं?'
दण्ड भोग जलकर मुनिसत्तम! छल का पाप छुड़ा लूँगा।'
परशुराम का क्रोध भयानक निष्फल कभी न जायेगा।