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सिवाय ख़ून-ए-जिगर, सो जिगर में ख़ाक नहीं <br><br>
मगर ग़ुबार हुए पर हव हवा उड़ा ले जाये <br>
वगर्ना ताब-ओ-तवाँ बाल-ओ-पर में ख़ाक नहीं <br><br>
असर मेरे नफ़स-ए-बेअसर में ख़ाक नहीं <br><br>
ख़याल-ए-जल्वा-ए-गुल से ख़राब है मैकश मयकश <br>शराबख़ाने के दीवरदीवार-ओ-दर में ख़ाक नहीं <br><br>
हुआ हूँ इश्क़ की ग़ारतगरी से शर्मिंदा <br>
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