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कब से हूँ क्या बताऊँ जहाँ-ए-ख़राब में <br>
शब हाये हाय हिज्र को भी रखूँ गर हिसाब में <br><br>
ता फिर न इन्तज़ार में नींद आये उम्र भर <br>
आने का अहद कर गये आये जो ख़्वाब में <br><br>
क़ासिद के आते -आते ख़त इक और लिख रखूँ <br>
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में <br><br>
जाँ नज़्र देनी भूल गया इज़्तिराब में <br><br>
है तेवरी चड़ी चढ़ी हुई अंदर नक़ाब के <br>
है इक शिकन पड़ी हुई तर्फ़-ए-नक़ाब में<br><br>
जिस सेह्र से सफ़िना रवाँ हो सराब में <br><br>
"ग़ालिब' छूटी शराब, पर अब भी कभी -कभी <br>
पीता हूँ रोज़-ए-अब्र-ओ-शब-ए-माहताब में<br><br>
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