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सुब्‌ह-ए-फ़र्दा१फ़र्दा<ref>आनेवाले कल की सुबह </ref>
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यह सरहद फुल की, ख़ुशबू की, रंगों की, बहारों की
धनक की तरह हँसती, नदियों की तरह बल खाती
वतन के आरोज़ों२ आरोज़ों<ref>कपालें</ref> पर ज़ुल्फ़ की मानिन्द लहराती
महकती, जगमगाती, इक दुल्हन की माँग की सूरत
कि जो बालों को दो हिस्सों में तक़सीम करती है
पडे़ नज़रें न इस पर ख़ूँ के ताजिर ताजदारों की
महब्बत हुक्मराँ हो, हुस्न का़तिल, दिल मसीहा हो
चमन पे आग बरसे शोलः-पैकर३ पैकर<ref>अंगारे की भाँति देह वाला</ref> गुलइज़ारों की
वो दिन आये कि नफ़रत हो के आँसू दिल से बह आये
वो दिन आये यह सरहद बोसा-ए-लब बनके रह जाये
यह सरहद मनचलों की, दिल जलों की, जाँनिसारों की
यह सरहद सरज़मीने-दिल के बाँके शहसवारों की
यह सरहद कजकुलाहों <ref>तिरछी टोपी लगानेवाले</ref> की, यह सरहद कजअदाओं की
यह सरहद गुलशने-लाहौरो-दिल्ली की हवाओं की
यह सरहद अम्नो-आज़ादी के दिलअफ़रोज़ ख़्वाबों की
मैं इस सरहद पे कब से मुन्तज़िर हूँ सुब्‌हे-फ़र्दा का
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१.आनेवाले कल की सुबह २.कपालें ३.अंगारे की भाँति देह वाला ४.तिरछी टोपी लगानेवाले। {{KKMeaning}}</poem>