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|रचनाकार=आनंद बख़्शी
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कोशिश कर के देख ले दरिया सारे नदिया सारी
दिल की लगी नहीं बुझती, बुझती है हर चिंगारी

सोलह बरस की बाली उमर को सलाम
ऐ प्यार! तेरी पहली नज़र को सलाम...

दुनिया में सबसे पहले जिसने ये दिल दिया
दुनिया के सबसे पहले दिलबर को सलाम
दिल से निकलने वाले रस्ते का शुक्रिया
दिल तक पहुँचने वाली डगर को सलाम
ऐ प्यार! तेरी पहली नज़र को सलाम...

जिस में जवान हो कर, बदनाम हम हुए
उस शहर, उस गली, उस घर को सलाम
जिसने हमें मिलाया, जिसने जुदा किया
उस वक़्त, उस घड़ी, उस डगर को सलाम
ऐ प्यार! तेरी पहली नज़र को सलाम ...

मिलते रहे यहाँ हम, ये है यहाँ लिखा
उस लिखावट की ज़ेरो-ज़बर को सलाम
साहिल की रेत पर यूँ लहरा उठा ये दिल
सागर में उठने वाली हर लहर को सलाम
यूँ मस्त गहरी-गहरी आँखों की झील में
जिसने हमें डुबोया उस भँवर को सलाम
घूँघट को छोड़कर जो सर से सरक गयी
ऐसी निगोड़ी धानी चुनर को सलाम
उल्फ़त के दुश्मनों ने कोशिश हज़ार की
फिर भी नहीं झुकी जो, उस नज़र को सलाम

ऐ प्यार! तेरी पहली नज़र को सलाम...
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