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{{KKRachna
|रचनाकार=आनंद बख़्शी
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<poem>
मैं तुलसी तेरे आँगन की
कोई नहीं मैं
कोई नहीं मैं तेरे साजन की
मैं तुलसी तेरे आँगन की

माँग भी तेरी, सिंदूर भी तेरा
सब कुछ तेरा, कुछ नहीं मेरा
तोहे सौगन्ध तेरे (मेरे) अँसुअन की
मैं तुलसी तेरे आँगन की

काहे को तू मुझसे जलती है
ऐ री मोहे तो तू लगती है
कोई सहेली बचपन की
मैं तुलसी तेरे आँगन की
</poem>