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स्त्री-पुरुष / विमल कुमार
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04:20, 20 जुलाई 2009
मैं वर्षों तक
बाघ बनकर जिसे डराता रहा
वह एक दिन मेरे सामने इतनी बड़ी हो गई
मैं हार गया
तब मुझे लगा, मैं नरभक्षी हूँ
अपना ही माँस
सैयों
सदियों
से खाता रहा हूँ
</Poem>
अनिल जनविजय
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