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स्त्री-पुरुष / विमल कुमार

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मैं वर्षों तक
बाघ बनकर जिसे डराता रहा
 
वह एक दिन मेरे सामने इतनी बड़ी हो गई
मैं हार गया
तब मुझे लगा, मैं नरभक्षी हूँ
अपना ही माँस
सैयों सदियों से खाता रहा हूँ
</Poem>
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