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'''रख़्से-तख़्लीक़'''<ref>सृष्टि का नृत्य</ref> जब कहीं फूल हँसे
जब कोई तिफ़्ल सरे-राह मिले
जब कोई शाख़े-सियाह-रंग पे जब चाँद खिले
रक़्से-तख़्लीके़-जहाने-गुज़राँ जारी है
'''खोल आँख, ज़मीं देख, फ़लक देख, फ़ज़ा देख''' नवम्बर, मेरा गहवारा है, ये मेरा महीना है
इसी माहे-मुनव्वर<ref>उजालों से भरा हुआ महीना</ref> में
मिरी आँखों ने पहली बार सूरज की सुनहरी रौशनी देखी
कोई चेहरा हो नहीं सकता
कि वो इक माँ का चेहरा था
जो अपने दिल के ख़्वाबों, प्यार की किरनों से रौशन था
वो पाकीज़ा मुक़द्दस सीनःए-ज़र्रीं<ref>स्वर्णमय</ref>
मेरा हर शे’र अब इसकी हिफ़ाज़त की ज़मानत है
'''इक़राअ़<ref>पढो़</ref>-अल्लमा-बिलक़लम'''
मिरा पहला सबक इक़राअ़
'''फ़ितरत की फ़ैयाज़ियाँ'''
मुझे सूरज ने पाला