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पसे-मर्ग मेरे मेरी मजार पर जो दिया किसी ने जला दिया ।
उसे आह! दामनेदामन-ए-बाद ने सरेशाम ही से बुझा दिया ।।
मुझे दफ़्न करना तू जिस घड़ी, तो ये उससे कहना कि परी,
वो जो तेरा आशिक़ेआशिक़-ए-जार था, तहे तह-ए-ख़ाक उसको दबा दिया ।
दमेदम-ए-ग़ुस्ल से मेरे पेशतर उसे हमदमों ने ये सोचकर,
कहीं जावे उसका दिल दहल, मेरी लाश पर से हटा दिया ।
मेरी आँख झपकी थी एक पल, मेरे दिल ने चाहा कि उसके चल,
दिले दिल-ए-बेक़रार ने ओ मियाँ! वहीं चुटकी लेके जगा दिया ।
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