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Kavita Kosh से
थे कभी दुल्हा स्वयं बारातियों तक आ गये ।।
वक्त का पहिया किसे कब कहां कुचले कहां कब क्या पता ।पता।
थे कभी रथवान अब बैसाखियों तक आ गये ।।