भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: लिपट जाओ ऐसे जैसे लिपट जाती है लताएँ पेड़ों से छा जाओ मुझपर जैसे ...
लिपट जाओ ऐसे

जैसे लिपट जाती है लताएँ

पेड़ों से

छा जाओ मुझपर

जैसे छा जाता है मेघ आसमान पर

बना लो मुझे अपना

शरबत में मिठास की तरह

निचोड़ लो मेरा हर कतरा

नींबू की तरह

निगल जाओ मेरा वजूद

जैसे निगल लेती है मृत्यु

उकता गया हूँ

अपने आप से

छिपा लो मुझे कहीं भी

किसी भी तरह
84
edits