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भाई से ज़बान लड़ाई थी -
तुम्हें पाने को!
 
 
 
माँ अपनी कोख नाखूनों से नोंचती रह गई ,
मैं अपना इतिहास जलाकर आई थी -
तुम्हें पाने को!
 
 
 
तुमने मुझे नया नाम दिया -
मैं भागी चली आई थी
तुम्हें पाने को ;
 
 
 
और सो गई थी
थककर चकनाचूर.
 
 
 
आँख खुली तो तुम्हारी दाढ़ी उग आई थी ,
तुम हिजाब कहकर
मेरे ऊपर कफ़न डाल रहे थे.
 
 
 
तुम्हारी आँखों में देखा मैंने झाँककर -
मैं देखती ही रह गई ;
तुमने मुझे ज़िंदा कब्र में गाड़ दिया!
 
 
 
एक बार फिर