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18:00, 5 जून 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
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<poem>
'''माँ'''
वे मधुवांछी
अभिलाषी जन
रोप गए
ईखों की पौधें,
पूरा घिरा
प्राणतल मेरा।
अभ्यासों से
पुनर्जन्म पा-पा
मिट जातीं
ईखों की अजस्र
मृदुधारा को
लपटें
निःशेष करातीं।
</poem>