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जीवन / कविता वाचक्नवी

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'''जीवन'''


जीवन तो
यों
स्वप्न नहीं है
आँख मुँदी औ’ खुली
चुक गया।

यह तपते अंगारों पर
नंगे पाँवों
हँस-हँस चलने
बार-बार
प्रतिपल जलने का
नट-नर्तन है।
</poem>