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08:20, 7 जून 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
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<poem>
'''नकली तारों की पुच्छलें'''
वह घूमता है
अपनी जेबों में
उपाधियाँ लिए
और कहता है मुझसे
हाँका लगाऊँ मैं।
खरीदारों के बडे़ बाज़ार में
औने-पौने कुछ नहीं बिकता
सिवाय ईमान के।
छपे हुए प्रशस्ति-पत्रों पर
हस्ताक्षर-सा टुच्चा
व्यक्तित्व मेरा
टोकरी से हवा में उड़
चिपक जाए
नकली तारों की पुच्छलें बन
इस तरह
कि धो न पाएँ
आंधियाँ, तूफान, बरखा
उससे पहले
फाड़ देने चाहिएँ
पत्र, न्यौते और
सूची-पत्र
सब।
</poem>