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09:31, 7 जून 2009 {{KKRachna
|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
}}
<poem>
'''दूरियों के तट'''
आँसुओं को गीत में ढाला सदा
पीर को अविराम ही पाला सदा
प्रीत के सेतुक रचे
::: कुछ पास आने के लिए
दूरियों के तट बसे
::: मन को
::::: निकट ढाला सदा।
</poem>