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Kavita Kosh से
मगर जीने की सूरत तो रही है<br><br>
मैं क्यूँ फिरता हूँ तन्हा मारा -मारा<br>
ये बस्ती चैन से क्यों सो रही है<br><br>
ख़िज़ाँ पत्तों में छुप के रो रही है<br><br>
उदासी बाल खोले सो रही है<br><br>