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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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उसे न विश्‍व की विभूतियाँ दिखीं,

उसे मनुष्‍य की न खूबियाँ दिखीं,

मिलीं हृदय-रहस्‍य की न झाँकियाँ,

सका न खेल

जो कि प्राण

का जुआ!


सजीव है गगन किरण-पुलक भरा,

सजीव गंध से बसी वसुंधरा,

पवन अभय लिए प्रणय कहानियाँ,

डरा-मरा

न स्‍नेह ने

जिसे छुआ!


गगन घृणित अगर न गीत गूंजता,

अवनि घृणित अगर न फूल फूलता,

हृदय घृणित अगर न स्‍वप्‍न झूलता,

जहाँ बहा

न रस वहीं

नरक हुआ!
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