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Kavita Kosh से
चुराय के हँडिया से ,
हमार कोऊ का करि है !
आपुन सपूत केर भर भर थरिया ,
तऊ पै कंटरौल हजार !
हमार कोऊ का करि है !
थारी में लै-लै बचाय रखि जाइब रे !
घिउ डारी दार, रोटी चार !
हमार कोऊ का करि है !
खींच उहै थरिया पटा पे बैठ जइबे ,
सबाद लै-लै खाई घुँघटा मार !
हमार कोऊ का करि है !
उनका तो देइत गमकौआ सबुनवा ,
नखरा न दिखिबे तुम्हार !
हमार कोऊ का करि है !
खँजड़ा पे डारि सनलैट ,केर टिकिया ,
बहार !
हमार कोऊ का करि है !
खिरकी पे काहे खरी, बंद कर केवरिया,
खीसें मति काढ़ !
हमार कोऊ का करि है !
गाल चाहे फूलें और टोंके दिन रात रहें,
हम तो हँसिबे करी मुँह फार
हमार कोऊ का करि है !
उनका बिछावन झका-झक्क चद्दर