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{{KKRachna
|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
}}
<poem>
'''मौक्तिक'''

तुम्हारे मन के
एक कोने में
बाँध दिया था
आँचल
कुछ मोती लपेट कर
मैंने,
तुम एक-एक कर
तोड़ते रहे बँधाई,
मुक्ति की चाह में
तुमने खोल दिया बंधन
उलट दिया दामन
और लो!
सारे मोती
बिखर गए
टप-टप-टप-टप॥
</poem>