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17:47, 16 जून 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
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<poem>
'''कल के नाम'''
हरियाली दूब पर
दो पल
बैठे रहे उस दिन
मुखर पन्ने
ढीले पाँव
थकी चप्पलें
दृश्य से अदृश्य - छुअन
एक चुप्पी-वाचाल
निसर्ग के गदबदाए रंग
धुली धूप
बिलछती हवा
मौन संवाद करते
::: अंबर ऋतंभरा।
:::बीच का
:::खिलता अन्धकार (ऊपर से नीचे)
:::खग कलरव (नीचे से ऊपर)
:::पानी का मचलता गीलापन (परस्पर)
:::जुड़ाव भरता रहा
:::अंतःसाक्षी - सा, अभिषेक का।
अगली ही प्रस्तुति का
कोई अक्षत-क्षत
कोई अक्षत-रोली
मुकुट और नूपुर के बीच की
मेखला के
पाँच कुमकुमी रेशमबंध
सहलाएगी
रूप, रस, गन्ध,
स्पर्श और शब्द,
पंच-तंत्र में, पंचाश्रम में
अधिष्ठित होंगे।
पंच-पोर पर
गिन सकते हो
खोल हथेली
भूल किसी दिन
कभी गए तो........।
</poem>