Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता वाचक्नवी }} <poem> '''मा निषाद....''' और उस रात, और उस...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
}}
<poem>
'''मा निषाद....'''


और उस रात,
और उस रात के बाद,
फिर उसके भी बाद,
जाने कितनी रातें
जाने कितनी नींदें
जाने कितने स्वप्न
चीखों से तोड़े हमने।

::: एक उलटा लटका चमगादड़
::: छत के कुंडे में
::: हर बार दीखता
::: हर जाग में
::: हर स्वप्न में
::: हर रात में
::: और
::: मैंने
::: नोंच दिए क्रौंच सभी
::: सपनों के।
::: आँख खुली,
::: पंख
::: सब ओर छितरे थे।
</poem>