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{{KKRachna
|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
}}
<poem>
'''बच्चियो!'''

चुहल करती बच्चियो!
महमहाते रेशमी आँचल तुम्हारे
यकायक, जब कभी
छूकर गुजरते हैं
हमारी बाँह को, तो
कोई मानो
कह रहा हो -
बाँधना मत दूर
इक अनजान
ऐसे हाथ में
कि हम
मनो दूरी मनों पर
झेलती रोया करें
ढोया करें
हरदम एकाकी।
</poem>