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06:15, 21 जून 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
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'''नैनम् दहति पावकः'''
चकमक पाषाण!
अँधेरी रात के उजला माँगने पर
तुम्हारी चिंगारियों से फूटा प्रकाश
मेरे घर कि आग
नहीं हुआ वह,
न मेरा घर था वहाँ
न तुम्हारी आग को बँधना स्वीकार
सार्वजनीन है - आग तुम्हारी
कुछ आते-जातों के लिए।
बचा कर रखना
थोडी़ आग
कि आग देने मुझे
कोई नहीं आएगा जब
तब दे सको
एक चिंगारी - भर
मेरी पिपासा के पुनरागमन के लिए।
</poem>