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00:57, 22 जून 2009 यों तो खुशी के दौर भी होते है कम नहीं
ऐसा है कौन, दिल में मगर जिसके गम नहीं!
हम हैं कि जी रहे हैं हरेक झूठ को सच मान
वरना जो सच कहें, तेरे वादों में दम नहीं
कुछ तो ज़रूर है तेरी बेगानगी का राज़
बेबस हो तू भले ही मगर बेरहम नहीं
यह साज़ बेसुरा भी ग़नीमत है दोस्तों!
कल लाख पुकारे कोई, बोलेंगे हम नहीं
कितना भी लोग प्यार से देखें गुलाब को
अब अपनी रंगों-बू का उसको भरम नहीं