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लड़की / कविता वाचक्नवी

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<poem>
'''लड़की'''

अक्सर बुदबुदाती
एक उम्रदराज़ लड़की
थकान और तनाव के
सदाबहार कोहरे में
शांति के फूल चुगने
धरती पर सोई मिली।
बीमार माँ के
कर्क-दंश
दाँत में भींच
खींच फेंकती
कुम्हलई
अक्सर बुदबुदाती
एक उम्रदराज़ लड़की
लहुलुहान सोई मिली।

ज्योतिषियों के तंत्र सारे
रटे गए मंत्र सारे
नवग्रह दशाएँ
भाग्यविधाता कंकर-शंकर
साथ नहीं देते अक्सर
उन सारी लड़कियों का
छली जाती हैं जो वक्त से
छले जाती हैं आप ही को जो
और बेतहाशा भागती हैं
दर्द से बेहाल होकर
किसी दुलार भरे क्षण की याद में
मिटाए जाती है
अस्तित्व का कण-कण
बूँद-बूँद बन,
प्यास की भरपाई में।
</poem>