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धूमिल / परिचय

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हिन्दी साहित्य की साठोत्तरी कविता के शलाका पुरुष स्व. सुदामा पाण्डेय धूमिल अपने बागी तेवर व समग्र उष्मा के सहारे संबोधन की मुद्रा में ललकारते दिखते हैं। तत्कालीन परिवेश में अनेक काव्यान्दोलनों का दौर सक्रिय था, परंतु वे किसी के सुर में सुर मिलाने के कायल न थे। उन्होंने तमाम ठगे हुए लोगों को जुबान दी। कालांतर में यही बुलन्द व खनकदार आवाज का कवि जन-जन की जुबान पर छा गया।