[[Category:मीराबाई]][[Category:कविताएँ]][[Category:पद]]{{KKGlobal}}{{KKSandarbhKKRachna|लेखकरचनाकार=मीराबाई|पुस्तक=|प्रकाशक=|वर्ष=|पृष्ठ=
}}
[[Category:पद]]
सुण लीजो बिनती मोरी, मैं शरण गही प्रभु तेरी।<br>
तुम(तो) पतित अनेक उधारे, भव सागर से तारे।।<br>