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17:11, 27 जून 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
}}
<poem>
'''गोरैया'''
धूप के मुहाने पर
पाँव रख
छोटी-सी गोरैया एक
खड़ी हो जाती है।
धूप समझती
चिड़िया के पंखों का विस्तार भी
समेट लिया मैंने
और सोचती है चिड़िया
रोक सकती हूँ धूप
मैं अभी
ठहर जाऊँ यदि-तब भी
डरती है धूप
मेरी छाया तक से भी।
</poem>