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[[Category:ग़ज़ल]]
 
अपने तड़पने की मैं तदबीर पहले कर लूँ<br>
तब फ़िक्र मैं करूँगा ज़ख़्मों को भी रफू काका।<br><br>
यह ऐश के नहीं हैं या रंग और कुछ है<br>
हर गुल है इस चमन में साग़र भरा लहू काका।<br><br>
बुलबुल ग़ज़ल सराई, आगे हमारे मत कर<br>सब हमसे सीखते हैं, अंदाज़ गुफ़्तगू काका।
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