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10:49, 30 जून 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शाद अज़ीमाबादी
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अगर मरते हुए लब पर न तेरा नाम आएगा।
तो मैं मरने से दरगुज़रा, मेरे किस काम आएगा॥
शबेहिजराँ की सख़्ती हो तो हो लेकिन यह क्या कम है?
कि लब पर रात भर रह-रहके तेरा नाम आएगा॥
यही कहकर अज़ल को क़र्ज़ख्वाहों की तरह टाला।
कि "लेकर आज क़ासिद यार का पैगाम आएगा"॥
गली में यार की ऐ ‘शाद’ सब मुश्ताक़<ref>अभिलाषा</ref> बैठे हैं।
ख़ुदा जाने वहाँ से हुक्म किसके नाम आएगा॥
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