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{{KKRachna
|रचनाकार=शाद अज़ीमाबादी
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अगर मरते हुए लब पर न तेरा नाम आएगा।
तो मैं मरने से दरगुज़रा, मेरे किस काम आएगा॥

शबेहिजराँ की सख़्ती हो तो हो लेकिन यह क्या कम है?
कि लब पर रात भर रह-रहके तेरा नाम आएगा॥

यही कहकर अज़ल को क़र्ज़ख्वाहों की तरह टाला।
कि "लेकर आज क़ासिद यार का पैगाम आएगा"॥

गली में यार की ऐ ‘शाद’ सब मुश्ताक़<ref>अभिलाषा</ref> बैठे हैं।
ख़ुदा जाने वहाँ से हुक्म किसके नाम आएगा॥

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