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11:30, 6 जुलाई 2009
निगहे-क़हर ख़ास है मुझपर।
यह तो अहसाँ हुआ सितम न हुआ॥
अब करम है तो यह मिला है मुझे।
कि मुझी पर तेरा करम न हुआ।।
गुल में वो अब नहीं है जो आलम था खार का।
अल्लाह क्या हुआ वो ज़माना बहार का॥
उसको भूले हुए तो हो ‘फ़ानी’।
क्या करोगे अगर वोह याद आया॥
बा-खबर है वोह सबकी हालत से।
लाओ हम पूछ लें न हाल अपना॥