1,546 bytes added,
07:48, 8 जुलाई 2009
फूलों से तअ़ल्ल्लुक़ तो, अब भी है मगर इतना।
जब ज़िक्रे-बहार आया, समझे कि बहार आई॥
कर खू़ए-जफ़ा न यक-बयक तर्क।
क्या जानिये मुझपै क्या गुज़र जाये॥
वो हमसे कहाँ छुपते? हम खुच हैं जवाब उनका।
महमिल में जो छुपते हैं, छुपते नहीं महमिल से॥
हर राह से गुज़र कर दिल की तरफ़ चला हूँ।
क्या हो जो उनके घर की यह राह भी न निकले॥
शिकवा न कर फ़ुगाँ का, वो दिन खु़दा न लाये।
तेरी जफ़ा पै दिल से जब आह भी न निकले॥
लो तबस्सुम भी शरीके-निगहे-नाज़ हुआ।
आज कुछ और बढ़ा दी गई की़मत मेरी॥
दो घड़ी के लिए मीज़ाने-अदालत ठहरे।
कुछ मुझे हश्र में कहना है ख़ुदा से पहले॥
गुल दिये थे तो काश फ़स्ले-बहार।
तूने काँटे भी चुन लिये होते॥