भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: पहले अपनी तो ज़ात पहचाने। राज़े-क़ुदरत बखाननेवाला॥ जानकर और हो ...
पहले अपनी तो ज़ात पहचाने।
राज़े-क़ुदरत बखाननेवाला॥
जानकर और हो गया अनजान।
हो तो ऐसा हो जाननेवाला॥
पेट के हलके लाख बड़मारें।
कोई खुलता है जाननेवाला॥
ख़ाक में मिलके पाक हो जाता।
छानता क्या है छाननेवाला॥
दिन को दिन समझे और न रात को रात।
वक़्त की क़द्र जाननेवाला॥
राज़े-क़ुदरत बखाननेवाला॥
जानकर और हो गया अनजान।
हो तो ऐसा हो जाननेवाला॥
पेट के हलके लाख बड़मारें।
कोई खुलता है जाननेवाला॥
ख़ाक में मिलके पाक हो जाता।
छानता क्या है छाननेवाला॥
दिन को दिन समझे और न रात को रात।
वक़्त की क़द्र जाननेवाला॥