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'''लेखक: [[मैथिलीशरण गुप्त]]'''
[[Category:मैथिलीशरण गुप्त]]
"माँ कह एक कहानी।"<br>
बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?"<br>
"कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी<br>
कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?<br>
माँ कह एक कहानी।"<br><br>
"तू है हठी, मानधन मेरे, सुन उपवन में बड़े सवेरे,<br>
तात भ्रमण करते थे तेरे, जहाँ सुरभी मनमानी।"<br>
"जहाँ सुरभी मनमानी! हाँ माँ यही कहानी।"<br><br>
वर्ण वर्ण के फूल खिले थे, झलमल कर हिमबिंदु झिले थे,<br>
हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी।"<br>
"लहराता था पानी, हाँ हाँ यही कहानी।"<br><br>
"गाते थे खग कल कल स्वर से, सहसा एक हँस ऊपर से,<br>
गिरा बिद्ध होकर खर शर से, हुई पक्षी की हानी।"<br>
"हुई पक्षी की हानी? करुणा भरी कहानी!"<br><br>
चौंक उन्होंने उसे उठाया, नया जन्म सा उसने पाया,<br>
इतने में आखेटक आया, लक्ष सिद्धि का मानी।"<br>
"लक्ष सिद्धि का मानी! कोमल कठिन कहानी।"<br><br>
"माँगा उसने आहत पक्षी, तेरे तात किन्तु थे रक्षी,<br>
तब उसने जो था खगभक्षी, हठ करने की ठानी।"<br>
"हठ करने की ठानी! अब बढ़ चली कहानी।"<br><br>
हुआ विवाद सदय निर्दय में, उभय आग्रही थे स्वविषय में,<br>
गयी बात तब न्यायालय में, सुनी सब ने जानी।"<br>
"सुनी सब ने जानी! व्यापक हुई कहानी।"<br><br>
राहुल तू निर्णय कर इसका, न्याय पक्ष लेता है किसका?"<br>
"माँ मेरी क्या बानी? मैं सुन रहा कहानी।<br>
कोई निरपराध को मारे तो क्यों न उसे उबारे?<br>
रक्षक पर भक्षक को वारे, न्याय दया का दानी।"<br>
"न्याय दया का दानी! तूने गुणी कहानी।"<br><br>
[[Category:मैथिलीशरण गुप्त]]
"माँ कह एक कहानी।"<br>
बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?"<br>
"कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी<br>
कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?<br>
माँ कह एक कहानी।"<br><br>
"तू है हठी, मानधन मेरे, सुन उपवन में बड़े सवेरे,<br>
तात भ्रमण करते थे तेरे, जहाँ सुरभी मनमानी।"<br>
"जहाँ सुरभी मनमानी! हाँ माँ यही कहानी।"<br><br>
वर्ण वर्ण के फूल खिले थे, झलमल कर हिमबिंदु झिले थे,<br>
हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी।"<br>
"लहराता था पानी, हाँ हाँ यही कहानी।"<br><br>
"गाते थे खग कल कल स्वर से, सहसा एक हँस ऊपर से,<br>
गिरा बिद्ध होकर खर शर से, हुई पक्षी की हानी।"<br>
"हुई पक्षी की हानी? करुणा भरी कहानी!"<br><br>
चौंक उन्होंने उसे उठाया, नया जन्म सा उसने पाया,<br>
इतने में आखेटक आया, लक्ष सिद्धि का मानी।"<br>
"लक्ष सिद्धि का मानी! कोमल कठिन कहानी।"<br><br>
"माँगा उसने आहत पक्षी, तेरे तात किन्तु थे रक्षी,<br>
तब उसने जो था खगभक्षी, हठ करने की ठानी।"<br>
"हठ करने की ठानी! अब बढ़ चली कहानी।"<br><br>
हुआ विवाद सदय निर्दय में, उभय आग्रही थे स्वविषय में,<br>
गयी बात तब न्यायालय में, सुनी सब ने जानी।"<br>
"सुनी सब ने जानी! व्यापक हुई कहानी।"<br><br>
राहुल तू निर्णय कर इसका, न्याय पक्ष लेता है किसका?"<br>
"माँ मेरी क्या बानी? मैं सुन रहा कहानी।<br>
कोई निरपराध को मारे तो क्यों न उसे उबारे?<br>
रक्षक पर भक्षक को वारे, न्याय दया का दानी।"<br>
"न्याय दया का दानी! तूने गुणी कहानी।"<br><br>