आप क्या जानें मुझपै क्या गुज़री।
सुबह दम सुबहदम देखकर गुलों का निखार॥
दूर से देख लो हसीनों को।
बेनियाज़ी भली कि बेअदबी।
लड़खछ़्आती लड़खडा़ती ज़बाँ से शिअवयेशिकवये-यार॥ बन्दगी का सबूत दूँ क्योंकर। इससे बहतर है कीजिये इन्कार॥ ऐसे दो दिल भी कम मिले होंगे। न कशाकश हुई न जीत न हार॥