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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=फ़ानी बदायूनी|संग्रह=}}फूलों से तअ़ल्ल्लुक़ तो, अब भी है मगर इतना।
जब ज़िक्रे-बहार आया, समझे कि बहार आई॥