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Kavita Kosh से
"तू है हठी, मानधन मेरे, सुन उपवन में बड़े सवेरे,<br>
तात भ्रमण करते थे तेरे, जहाँ सुरभी सुरभि मनमानी।"<br>"जहाँ सुरभी सुरभि मनमानी! हाँ माँ यही कहानी।"<br><br>
वर्ण वर्ण के फूल खिले थे, झलमल कर हिमबिंदु झिले थे,<br>
हुआ विवाद सदय निर्दय में, उभय आग्रही थे स्वविषय में,<br>
गयी बात तब न्यायालय में, सुनी सब सभी ने जानी।"<br>"सुनी सब सभी ने जानी! व्यापक हुई कहानी।"<br><br>
राहुल तू निर्णय कर इसका, न्याय पक्ष लेता है किसका?"<br>
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