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तू कान का कच्चा है तो बहरा हो जा,

बदबीं<ref>कुदृष्टि</ref> है अगर आँख तो अन्धा हो जा।

गाली-गै़बत<ref>पीठ पीछे बुराई करने की आदत</ref> दरोग़गोई<ref>असत्य सम्भाषण</ref> कब तक?

‘अमजद’ क्यों बोलता है, गूँगा हो जा॥


मत सुन परदेकी बात बहरा हो जा,

मत कह इसरोरे-ग़नी<ref>शत्रु का भेद</ref> गूँगा हो जा।

वो रूए लतीफ़<ref>सुशील पवित्र नारी का कोमल देह</ref> और यह नापाक नज़र,

‘अमजद’ क्यों देखता है अन्धा हो जा॥




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